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Thursday, August 05, 2010

जिसे मैं प्यार समझ बैठा...

ना जाने क्या था तुम्हारी  आँखों में
जिसे  मैं  प्यार  समझ  बैठा|

तुम्हारी मेहरबानिया थी मुझपे
और मैं इकरार समझ बैठा|

टुटा था मेरा अपना दिल मैं
घुंघरू की आवाज़ समझ बैठा|

निकला था ज़नाज़ा अपनों का
मैं किसीका निकाह समझ बैठा|

छुआ था तन्हाई ने जिस्म को
और मैं तेरा हाथ समझ बैठा|

डाला था किसीने ने कफ़न मुझपर  
और मैं तेरा हिजाब  समझ बैठा|