कुछ आखों के मुक्कदर में ख्वाब नहीं होते !!
Thursday, October 21, 2010
Friday, October 15, 2010
जो मिलते थे कभी अपनों को तरह
जो मिलते थे कभी अपनों को तरह
अब बदलते है किताबों के पन्नो की तरह
कुछ हासिल हो ना हो ज़िन्दगी में मुझे
तुम मिलते हो रोज़ सपनो की तरह
ये बात तुम्हे भी हो मालूम शायद
मैं चाहता हूँ तुम्हे अपनों की तरह
तेरी ज़ुल्फ़, तेरे रुखसार, लब तेरे
सब मिलते है मुझे फ़ितनो की तरह
तुमने तोड़ दिए वादे रस्मो के लिए
मैं निभाता हूँ वादे, रस्मो की तरह
खुदा करे मैं भी भूल जाऊं तुझे
तू भूल गया जैसे मुझे कसमो की तरह
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