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Monday, February 21, 2011

मुझे अच्छी नहीं लगतीं

किसी की झील सी आखें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं,
किसी की फूल सी बातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

जो मैंने ख्वाब देखा था, उसी का साथ देखा था,
ये तनहा उजड़ी हुई रातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

अधूरी रात रहती है,   अधूरा चाँद रहता है,
अधूरी सी ये सौगातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

उसी में देखना सबको, सभी में देखना उसको,
ये दिल  के करामातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं ! 

बड़ी लम्बी जिंदगानी है, बहुत लम्बी निंभानी है
दो पल की मुलाकातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं ! 

वही किस्सा पुराना है,  की  सबको भूल जाना है,
ये भटकी  हुई  यादें,  मुझे अच्छी  नहीं लगतीं !

पल भर पास बैठूं, तो दिन भर मदहोश रहता हूँ,
तेरी खुशबू भरी सांसें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !


Thursday, February 17, 2011

यूँ ही

यूँ लगता है, चाँद उभर आया है बादलों में,

काले रंग पर, सफ़ेद फूलों के प्रिंट वाला सूट,
तुम पर बहुत अच्छा लगता है!!!!!