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Tuesday, December 28, 2010

मुझे बस, उदास शाम मत लिखना !

ख़त पर तुम, मेरा नाम मत लिखना
कुछ भी लिखना, अनजान मत लिखना !

अँधेरी रात या जलती दोपहर सही
मुझे बस, उदास शाम मत लिखना !

मेरी दीवानगी पे हंस लो जी भर
दिल पे अपने, नादान मत लिखना !

मुझे छोड़ कर तुम्हे जाना ही है
हो सके तो आखिरी, सलाम मत लिखना !

जो चाहो तुम वो सजा मंज़ूर है
बस मोहब्बत का, इल्ज़ाम मत लिखना !

लिए दिल में फिरता हूँ, मुझे याद है
"मेरे नाम का तुम क़लाम मत लिखना" !

घर मेरा जल गया दंगो में,और,
लोग कहते है, इसे सरेआम मत लिखना !

Wednesday, November 17, 2010

'मगहर'*

घर छोड़ दिया, गली छोड़ दी, शहर छोड़ दिया
उसको याद करने वाला, हर पहर छोड़ दिया!

मुझको ना रोक सकी, मेरी माँ की सदायें
अपने ख्वाबों की खातिर 'मगहर' छोड़ दिया!

वो चंचल, निम्मी, शेखू, नदीम, दीपक,
सुना है सभी दोस्तों ने वो घर छोड़ दिया!

विरानियाँ गूंजती होंगी मुस्कुराहटों की जगह
सुना है, बारिशों ने वो शजर छोड़ दिया!

उस दरख्त पर, ना सबा, ना पत्तियां, ना समर 
मेरी खवाशिहों ने फेका हुआ पत्थर छोड़ दिया!

इससे बेहतर तो था वो बुरा भला कहता
उसने तो मुझे कुछ ना कहकर छोड़ दिया!



 *मगहर: वो क़स्बा जहाँ मैंने बचपन के चौधह बरस गुज़ारे!

Thursday, October 21, 2010

एक शेर

तुम्हारे साए ही नज़र में बसा लिए मैंने
कुछ आखों के मुक्कदर  में ख्वाब नहीं होते !!

Friday, October 15, 2010

जो मिलते थे कभी अपनों को तरह

जो मिलते थे कभी अपनों को तरह
अब बदलते है किताबों के पन्नो की तरह

कुछ हासिल हो ना हो ज़िन्दगी में मुझे
तुम मिलते हो रोज़ सपनो की तरह

ये बात तुम्हे भी हो मालूम शायद
मैं चाहता हूँ तुम्हे अपनों की तरह

तेरी ज़ुल्फ़, तेरे रुखसार, लब तेरे
सब मिलते है मुझे फ़ितनो की तरह

तुमने तोड़ दिए वादे रस्मो के लिए
मैं निभाता हूँ वादे, रस्मो की तरह

खुदा करे मैं भी भूल जाऊं तुझे
तू भूल गया जैसे मुझे कसमो की तरह

Wednesday, September 08, 2010

थोड़ी बहुत तेरी खबर हम भी रखते है

दिल को छू ले वो हुनर, हम भी रखते  है
अपनी ग़ज़लों में थोडा असर, हम भी रखते है !

झुकी निगाह पर लगते है कयास क्या क्या
जेहन में जो उतरे,  वो नज़र हम भी रखते हैं!

हमने उससे कभी छाओं की आरज़ू ना की
अपने सेहन(आँगन) में एक शजर (पेड़) हम भी रखते है !

सुना है कोई सुबह शाम तेरे ख्यालों में है
थोड़ी बहुत तेरी खबर, हम भी रखते है !

बात ही कुछ ऐसी है की कह नहीं पाते
वरना हर बात मुख़्तसर, हम भी रखते है !

Thursday, August 05, 2010

जिसे मैं प्यार समझ बैठा...

ना जाने क्या था तुम्हारी  आँखों में
जिसे  मैं  प्यार  समझ  बैठा|

तुम्हारी मेहरबानिया थी मुझपे
और मैं इकरार समझ बैठा|

टुटा था मेरा अपना दिल मैं
घुंघरू की आवाज़ समझ बैठा|

निकला था ज़नाज़ा अपनों का
मैं किसीका निकाह समझ बैठा|

छुआ था तन्हाई ने जिस्म को
और मैं तेरा हाथ समझ बैठा|

डाला था किसीने ने कफ़न मुझपर  
और मैं तेरा हिजाब  समझ बैठा|

Saturday, July 17, 2010

तुम तूफ़ान बुला लेना

मेरी याद आये तुम्हे, कोई दीप जला लेना
और दिल न माने तो, मेरी ग़ज़ले गा लेना

अच्छी है ये गफलत  की तुमको साल लगेगा
अगले दिन तुम चाहो, तो मुझको भुला लेना

आंसू बन के आ जाऊं आँखों में जो कभी
फ़िक्र न करना , अपनी पल्क़े  झुका लेना

ढूँढ रहा हूँ आखिर जाने कौन सा साहिल मैं
धीरे धीरे हौले हौले,  मेरी नाव डूबा लेना

दिले के जैसे मेरे घर की छत भी टूटी है
अब कोई डर नहीं, तुम तूफ़ान बुला लेना|

Monday, March 15, 2010

उसका मिलना

उसका मिलना, और सारी हदें तोड़ के मिलना,
अच्छा लगा मुझे, उसका हर मोड़ पे मिलना !

हाथ से हाथ मिलाता रहा ज़माना अबतक
दिल छू गया, उसका दिल जोड़ के मिलना !

ज़ख्म उसके थे और अहसास मेरे दिल के  
वो पाँव के छाले, शोलों पे फोड़ के मिलना !

घर उसका, मेरे बिना भी रहता खूबसूरत
पर मेरे लिए, अपना घर तोड़ के मिलना !

काश कोई शाम आये, और लौट आये  वो
याद आता है उसका गली के मोड़ पे मिलना!