View Count

Friday, January 28, 2011

फूल थे

फूल थे, तो सबके पैरों तले थे,
काटों की तरह, हमने चुभना सीख लिया !

Thursday, January 27, 2011

१० दिन की छुट्टियां

एक एक पल में मीलों का सफ़र तय करते हुए,
मेरे ख्वाब, बहुत पीछे छूट गए मुझसे !
और मेरे ख्याल, मेरी ही मसरूफियत की ज़ंजीरो में बंधे
अपना दम तोड़ रहे है !

अब ना तो उगता सूरज शादाब है,
और ना ही ओस की बूंदों में कोई लज्ज़त!
गुनगुनी धुप की चादर भी नहीं है,
और शाम के खुशनुमा मंज़र भी नहीं!

मोहल्ले की बाज़ार की जीनत , खो चुकी है,
और शाम की चाय एक रूटीन है,
जिसकी चुस्कियों में एक अजीब कडवाहट है!

हफ्ते में मिली एक दिन की छुट्टी में
ये सब चीज़े खोजते हुए, मुझे एहसास हुआ
मेरी मसरूफियत, मेरा ही क़त्ल कर रही है!
और, मैं ही चश्म दीद गवाह हूँ, और ,
क़त्ल का ज़िम्मेदार भी शायद !

और साल के आखिर में मिली छुट्टियों में
मुझे मालूम हुआ की,
अपने अन्दर, रोज़ मर रहे, एक शख्स को
मैं १० दिनों में जिंदा नहीं कर सकता !!