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Wednesday, November 17, 2010

'मगहर'*

घर छोड़ दिया, गली छोड़ दी, शहर छोड़ दिया
उसको याद करने वाला, हर पहर छोड़ दिया!

मुझको ना रोक सकी, मेरी माँ की सदायें
अपने ख्वाबों की खातिर 'मगहर' छोड़ दिया!

वो चंचल, निम्मी, शेखू, नदीम, दीपक,
सुना है सभी दोस्तों ने वो घर छोड़ दिया!

विरानियाँ गूंजती होंगी मुस्कुराहटों की जगह
सुना है, बारिशों ने वो शजर छोड़ दिया!

उस दरख्त पर, ना सबा, ना पत्तियां, ना समर 
मेरी खवाशिहों ने फेका हुआ पत्थर छोड़ दिया!

इससे बेहतर तो था वो बुरा भला कहता
उसने तो मुझे कुछ ना कहकर छोड़ दिया!



 *मगहर: वो क़स्बा जहाँ मैंने बचपन के चौधह बरस गुज़ारे!