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Tuesday, December 27, 2011

वो साथ चल भी सकता था

 चाहता  तो  वो साथ  चल भी सकता  था,
आख्नों  में  उसकी मगर  मखमली  नज़ारे  थे !


राहों  में  मेरी  चट्टानें   थी, तूफ़ान  थे,
आँखों  में  उसकी  सुनहरी  लहरें  और  किनारे  थे !


 साथ  मेरे चलता  तो  उसे  क्या  मिलता ,
 पैरों  तले  मेरे सिर्फ  और  सिर्फ  अंगारे  थे !


सीने  से  लगाया जिनको  समझ  के  दोस्त  ,
अस्ल   में  वही  लोग  दुश्मन  हमारे थे !


जब  भी  मुड़कर  देखा  खुद  को, तो  पाया
हम थे तनहा  , मगर  साथ  में  तुम्हारे  थे !

Thursday, October 13, 2011

दुआ

जब  दुआ  के  लिए  हाथ  उठाये ,
तो  जुड़ी  हथेलियों  की  चांदनुमा  लकीरों  में 
तुम्हे  देखा  किये 
और  दुआओं  में 
तुम्हे  माँगा  किये!

Tuesday, September 06, 2011

मुफलिसी(poverty) वो  आईना  है  जिसमे,
अपने  पराये  पहचाने  जाते  हैं

Saturday, June 11, 2011

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी, अपने  हाथों  में  तुम्हारा  हाथ  लेकर,
पूछेगी, तुमने  क्या  हासिल  किया?
तुम्हारे  ज़वाब  में  होगा, बंगला, गाड़ियाँ, दौलत, शोहरत!
और  ज़िन्दगी  किसी  मनचली  लड़की  की  तरह  हंसकर, 
तुमसे  बहुत  दूर  चली  जाएगी!

Monday, March 28, 2011

कल चाँद देखा

मैंने हज़ार दीयों के बीच,
कल चाँद देखा,
आगे बढ़ कर जब छुआ उसे,
तो एहसास हुआ,
वो तो अक्स था झील में.

चाँद तो बहुत दूर है,
आसमा में कहीं,

और ये सफ़र मुझे
तनहा तय करना है!

Monday, February 21, 2011

मुझे अच्छी नहीं लगतीं

किसी की झील सी आखें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं,
किसी की फूल सी बातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

जो मैंने ख्वाब देखा था, उसी का साथ देखा था,
ये तनहा उजड़ी हुई रातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

अधूरी रात रहती है,   अधूरा चाँद रहता है,
अधूरी सी ये सौगातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

उसी में देखना सबको, सभी में देखना उसको,
ये दिल  के करामातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं ! 

बड़ी लम्बी जिंदगानी है, बहुत लम्बी निंभानी है
दो पल की मुलाकातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं ! 

वही किस्सा पुराना है,  की  सबको भूल जाना है,
ये भटकी  हुई  यादें,  मुझे अच्छी  नहीं लगतीं !

पल भर पास बैठूं, तो दिन भर मदहोश रहता हूँ,
तेरी खुशबू भरी सांसें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !


Thursday, February 17, 2011

यूँ ही

यूँ लगता है, चाँद उभर आया है बादलों में,

काले रंग पर, सफ़ेद फूलों के प्रिंट वाला सूट,
तुम पर बहुत अच्छा लगता है!!!!!

Friday, January 28, 2011

फूल थे

फूल थे, तो सबके पैरों तले थे,
काटों की तरह, हमने चुभना सीख लिया !

Thursday, January 27, 2011

१० दिन की छुट्टियां

एक एक पल में मीलों का सफ़र तय करते हुए,
मेरे ख्वाब, बहुत पीछे छूट गए मुझसे !
और मेरे ख्याल, मेरी ही मसरूफियत की ज़ंजीरो में बंधे
अपना दम तोड़ रहे है !

अब ना तो उगता सूरज शादाब है,
और ना ही ओस की बूंदों में कोई लज्ज़त!
गुनगुनी धुप की चादर भी नहीं है,
और शाम के खुशनुमा मंज़र भी नहीं!

मोहल्ले की बाज़ार की जीनत , खो चुकी है,
और शाम की चाय एक रूटीन है,
जिसकी चुस्कियों में एक अजीब कडवाहट है!

हफ्ते में मिली एक दिन की छुट्टी में
ये सब चीज़े खोजते हुए, मुझे एहसास हुआ
मेरी मसरूफियत, मेरा ही क़त्ल कर रही है!
और, मैं ही चश्म दीद गवाह हूँ, और ,
क़त्ल का ज़िम्मेदार भी शायद !

और साल के आखिर में मिली छुट्टियों में
मुझे मालूम हुआ की,
अपने अन्दर, रोज़ मर रहे, एक शख्स को
मैं १० दिनों में जिंदा नहीं कर सकता !!