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Monday, March 28, 2011
Thursday, January 27, 2011
१० दिन की छुट्टियां
एक एक पल में मीलों का सफ़र तय करते हुए,
मेरे ख्वाब, बहुत पीछे छूट गए मुझसे !
और मेरे ख्याल, मेरी ही मसरूफियत की ज़ंजीरो में बंधे
अपना दम तोड़ रहे है !
अब ना तो उगता सूरज शादाब है,
और ना ही ओस की बूंदों में कोई लज्ज़त!
गुनगुनी धुप की चादर भी नहीं है,
और शाम के खुशनुमा मंज़र भी नहीं!
मोहल्ले की बाज़ार की जीनत , खो चुकी है,
और शाम की चाय एक रूटीन है,
जिसकी चुस्कियों में एक अजीब कडवाहट है!
हफ्ते में मिली एक दिन की छुट्टी में
ये सब चीज़े खोजते हुए, मुझे एहसास हुआ
मेरी मसरूफियत, मेरा ही क़त्ल कर रही है!
और, मैं ही चश्म दीद गवाह हूँ, और ,
क़त्ल का ज़िम्मेदार भी शायद !
और साल के आखिर में मिली छुट्टियों में
मुझे मालूम हुआ की,
अपने अन्दर, रोज़ मर रहे, एक शख्स को
मैं १० दिनों में जिंदा नहीं कर सकता !!
मेरे ख्वाब, बहुत पीछे छूट गए मुझसे !
और मेरे ख्याल, मेरी ही मसरूफियत की ज़ंजीरो में बंधे
अपना दम तोड़ रहे है !
अब ना तो उगता सूरज शादाब है,
और ना ही ओस की बूंदों में कोई लज्ज़त!
गुनगुनी धुप की चादर भी नहीं है,
और शाम के खुशनुमा मंज़र भी नहीं!
मोहल्ले की बाज़ार की जीनत , खो चुकी है,
और शाम की चाय एक रूटीन है,
जिसकी चुस्कियों में एक अजीब कडवाहट है!
हफ्ते में मिली एक दिन की छुट्टी में
ये सब चीज़े खोजते हुए, मुझे एहसास हुआ
मेरी मसरूफियत, मेरा ही क़त्ल कर रही है!
और, मैं ही चश्म दीद गवाह हूँ, और ,
क़त्ल का ज़िम्मेदार भी शायद !
और साल के आखिर में मिली छुट्टियों में
मुझे मालूम हुआ की,
अपने अन्दर, रोज़ मर रहे, एक शख्स को
मैं १० दिनों में जिंदा नहीं कर सकता !!
Thursday, October 15, 2009
घर का दिया घर जलाये.............
घर का दिया घर जलाये तो क्या करुँ
ज़िन्दगी मुझको भूल जाए तो क्या करूँ
शाम की अदाओं में दिल नही लगता,
लाख चेहरों में वो चेहरा नही दिखता,
किस उम्मीद की करूँ उम्मीद अब
गुल ही चमन मिटाए तो क्या करूँ
घर का दिया घर जलाये.............
कोशिशों से वाबस्ता हैं फ़साने मेरे,
कुर्बान उसके आस्तां पे तराने मेरे,
मैं मुख्तसर दिन रात की तरह मगर
वो मुझे न समझ पाये तो क्या करूँ
घर का दिया घर जलाये............
वो लौट आते तो ज़िन्दगी लौट आती,
मेरी खल्वत में रौशनी तो मुस्कुराती,
मैं ले तो आया चाँद सितारे मगर
वो अपना वादा न निभाए तो क्या करूँ
घर का दिया घर जलाये............
ख़बर नही मिलती
तुम्हारे जाने की मुझे कोई ख़बर नही मिली
न कोई हिचकी, न कोई बेचैनी, और न ही कोई अहसास|
अब तो बस खाली़ आसमान है, और बंजर ज़मीन,
जो बरसो से किसी मौसम का इंतज़ार कर रही है|
रास्तों में खड़े पेड़, किसी चिड़िया के घरोंदे की आस में,
अपनी हरी पत्तियां खो चुके है,
और सुबह किसी मायूस बच्चे का चेहरा लिए हुए ,
मुझे जगा तो देती है, पर उदास ज़्यादा करती है|
रातें सारी अमावस की हैं , काली, बहुत काली,
और मेरी आवाज़ इनकी खामोशियों में गुम हो जाती है|
मेरे एहसास देखते है अब,तुम्हें जाते हुए,
ये सिलसिला, अब रोज दिखाई देता है,
बस, तुम्हारे आने की ख़बर नही मिलती|
न कोई हिचकी, न कोई बेचैनी, और न ही कोई अहसास|
अब तो बस खाली़ आसमान है, और बंजर ज़मीन,
जो बरसो से किसी मौसम का इंतज़ार कर रही है|
रास्तों में खड़े पेड़, किसी चिड़िया के घरोंदे की आस में,
अपनी हरी पत्तियां खो चुके है,
और सुबह किसी मायूस बच्चे का चेहरा लिए हुए ,
मुझे जगा तो देती है, पर उदास ज़्यादा करती है|
रातें सारी अमावस की हैं , काली, बहुत काली,
और मेरी आवाज़ इनकी खामोशियों में गुम हो जाती है|
मेरे एहसास देखते है अब,तुम्हें जाते हुए,
ये सिलसिला, अब रोज दिखाई देता है,
बस, तुम्हारे आने की ख़बर नही मिलती|
Friday, July 31, 2009
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो
मेरी एक तम्मना है
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो
मेरी बाँहों में न सही
ख्वाबों में आती रहो!
रौशनी बिखरे आंखों से
और होटों से फूल
बनके बहार तुम
ये फिजा महकती रहो!
दर्द से फासला रहे
न कहीं रहे प्यास
महकती रहे बदन की डाली
तुम हमेशा बलखाती रहो!
फ़रिश्ते देखें हैरां हो
हूर तुमसे पशेमान हो
कभी चाँद बनो कभी
तारे बन झिलमिलाती रहो!
मेरी एक तम्मना है
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो ..............
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो
मेरी बाँहों में न सही
ख्वाबों में आती रहो!
रौशनी बिखरे आंखों से
और होटों से फूल
बनके बहार तुम
ये फिजा महकती रहो!
दर्द से फासला रहे
न कहीं रहे प्यास
महकती रहे बदन की डाली
तुम हमेशा बलखाती रहो!
फ़रिश्ते देखें हैरां हो
हूर तुमसे पशेमान हो
कभी चाँद बनो कभी
तारे बन झिलमिलाती रहो!
मेरी एक तम्मना है
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो ..............
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