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Monday, February 21, 2011

मुझे अच्छी नहीं लगतीं

किसी की झील सी आखें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं,
किसी की फूल सी बातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

जो मैंने ख्वाब देखा था, उसी का साथ देखा था,
ये तनहा उजड़ी हुई रातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

अधूरी रात रहती है,   अधूरा चाँद रहता है,
अधूरी सी ये सौगातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं !

उसी में देखना सबको, सभी में देखना उसको,
ये दिल  के करामातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं ! 

बड़ी लम्बी जिंदगानी है, बहुत लम्बी निंभानी है
दो पल की मुलाकातें,  मुझे अच्छी नहीं लगतीं ! 

वही किस्सा पुराना है,  की  सबको भूल जाना है,
ये भटकी  हुई  यादें,  मुझे अच्छी  नहीं लगतीं !

पल भर पास बैठूं, तो दिन भर मदहोश रहता हूँ,
तेरी खुशबू भरी सांसें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !


5 comments:

  1. उत्‍कर्ष भाई, ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है। इसी तरह लिखते रहें और हमें पढवाते रहें, यही कामना है।
    ---------
    शिकार: कहानी और संभावनाएं।
    ज्‍योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।

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  2. Thanks a lot 'Rajnish'. and thanks a lot for such a warm welcome.

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  3. kya baat hai bhai... bahut aala..bahut khoob

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  4. o mera aur tumhara waqt guzra hasne rone mein,

    Usay puri tarah se tum bhula do PHIR CHALE JANA..
    Sukoot-e-jan ka matlab bata do PHIR CHALE JANA..

    Ya phir srgoshiyan dil ki suna do PHIR CHALE JANA..
    Najane Q hai lekin dekhne ki TUMKO aadat hai,

    Meri ye bewaja aadat chura do PHIR CHALE JANA..
    Mere in roz-o-shab ka ek faqat unwan bus "TUM" ho,

    Mujhe tum dusra unwan la do PHIR CHALE JANA..

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