किसी की झील सी आखें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं,
किसी की फूल सी बातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
जो मैंने ख्वाब देखा था, उसी का साथ देखा था,
ये तनहा उजड़ी हुई रातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
अधूरी रात रहती है, अधूरा चाँद रहता है,
अधूरी सी ये सौगातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
उसी में देखना सबको, सभी में देखना उसको,
ये दिल के करामातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
बड़ी लम्बी जिंदगानी है, बहुत लम्बी निंभानी है
दो पल की मुलाकातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
वही किस्सा पुराना है, की सबको भूल जाना है,
ये भटकी हुई यादें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
पल भर पास बैठूं, तो दिन भर मदहोश रहता हूँ,
तेरी खुशबू भरी सांसें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
उत्कर्ष भाई, ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। इसी तरह लिखते रहें और हमें पढवाते रहें, यही कामना है।
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Thanks a lot 'Rajnish'. and thanks a lot for such a warm welcome.
ReplyDeletebhai ... jabardast..!!
ReplyDeletekya baat hai bhai... bahut aala..bahut khoob
ReplyDeleteo mera aur tumhara waqt guzra hasne rone mein,
ReplyDeleteUsay puri tarah se tum bhula do PHIR CHALE JANA..
Sukoot-e-jan ka matlab bata do PHIR CHALE JANA..
Ya phir srgoshiyan dil ki suna do PHIR CHALE JANA..
Najane Q hai lekin dekhne ki TUMKO aadat hai,
Meri ye bewaja aadat chura do PHIR CHALE JANA..
Mere in roz-o-shab ka ek faqat unwan bus "TUM" ho,
Mujhe tum dusra unwan la do PHIR CHALE JANA..