चाहता तो वो साथ चल भी सकता था,
आख्नों में उसकी मगर मखमली नज़ारे थे !
राहों में मेरी चट्टानें थी, तूफ़ान थे,
आँखों में उसकी सुनहरी लहरें और किनारे थे !
साथ मेरे चलता तो उसे क्या मिलता ,
पैरों तले मेरे सिर्फ और सिर्फ अंगारे थे !
सीने से लगाया जिनको समझ के दोस्त ,
अस्ल में वही लोग दुश्मन हमारे थे !
जब भी मुड़कर देखा खुद को, तो पाया
हम थे तनहा , मगर साथ में तुम्हारे थे !
आख्नों में उसकी मगर मखमली नज़ारे थे !
राहों में मेरी चट्टानें थी, तूफ़ान थे,
आँखों में उसकी सुनहरी लहरें और किनारे थे !
साथ मेरे चलता तो उसे क्या मिलता ,
पैरों तले मेरे सिर्फ और सिर्फ अंगारे थे !
सीने से लगाया जिनको समझ के दोस्त ,
अस्ल में वही लोग दुश्मन हमारे थे !
जब भी मुड़कर देखा खुद को, तो पाया
हम थे तनहा , मगर साथ में तुम्हारे थे !
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