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Monday, August 03, 2009

कोई ख्वाब नही

अब इस ज़िन्दगी में कोई ख्वाब नही
अब इन आखों में कोई महता़ब नही!

चन्द लम्हों का साथ तुम्हारा,
अब हाथों में तुम्हारा हाथ नही!

एक बेकरारी थी, एक बेचैनी थी
अब दिल में कोई ज़ज्बात नही!

जिसे पढ़ने को था मैं बेकरार
मेरे करीब अब वो किताब नही!

ये जेहनों-सुकून भी, मौत का संमान भी
तुम्हारे चेहरे पे, जो आज नकाब नही!

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