क्या बात है, आज आसमा चुप है!
चहचहे नही उठते, समां चुप है!
तुम पास और पास कोई नही
फ़िर क्यूँ, ये मेरी ज़बा चुप है!
तुमको खो दिया खामोशियों ने मेरी
अब तुम बिन, सारा ज़हां चुप है!
आगाज़ पर नगमे कई गूंजे थे
मोहब्बत की मगर, इन्तिहाँ चुप है!
उजड़ी बस्तियों का मैंने शोर सुना
सरहद पार करता, ये कारवां चुप है!
चहचहे नही उठते समां चुप है.......
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