तुम्हारे जाने की मुझे कोई ख़बर नही मिली
न कोई हिचकी, न कोई बेचैनी, और न ही कोई अहसास|
अब तो बस खाली़ आसमान है, और बंजर ज़मीन,
जो बरसो से किसी मौसम का इंतज़ार कर रही है|
रास्तों में खड़े पेड़, किसी चिड़िया के घरोंदे की आस में,
अपनी हरी पत्तियां खो चुके है,
और सुबह किसी मायूस बच्चे का चेहरा लिए हुए ,
मुझे जगा तो देती है, पर उदास ज़्यादा करती है|
रातें सारी अमावस की हैं , काली, बहुत काली,
और मेरी आवाज़ इनकी खामोशियों में गुम हो जाती है|
मेरे एहसास देखते है अब,तुम्हें जाते हुए,
ये सिलसिला, अब रोज दिखाई देता है,
बस, तुम्हारे आने की ख़बर नही मिलती|
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