Monday, March 28, 2011
Monday, February 21, 2011
मुझे अच्छी नहीं लगतीं
किसी की झील सी आखें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं,
किसी की फूल सी बातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
जो मैंने ख्वाब देखा था, उसी का साथ देखा था,
ये तनहा उजड़ी हुई रातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
अधूरी रात रहती है, अधूरा चाँद रहता है,
अधूरी सी ये सौगातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
उसी में देखना सबको, सभी में देखना उसको,
ये दिल के करामातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
बड़ी लम्बी जिंदगानी है, बहुत लम्बी निंभानी है
दो पल की मुलाकातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
वही किस्सा पुराना है, की सबको भूल जाना है,
ये भटकी हुई यादें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
पल भर पास बैठूं, तो दिन भर मदहोश रहता हूँ,
तेरी खुशबू भरी सांसें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं !
Thursday, February 17, 2011
Friday, January 28, 2011
Thursday, January 27, 2011
१० दिन की छुट्टियां
एक एक पल में मीलों का सफ़र तय करते हुए,
मेरे ख्वाब, बहुत पीछे छूट गए मुझसे !
और मेरे ख्याल, मेरी ही मसरूफियत की ज़ंजीरो में बंधे
अपना दम तोड़ रहे है !
अब ना तो उगता सूरज शादाब है,
और ना ही ओस की बूंदों में कोई लज्ज़त!
गुनगुनी धुप की चादर भी नहीं है,
और शाम के खुशनुमा मंज़र भी नहीं!
मोहल्ले की बाज़ार की जीनत , खो चुकी है,
और शाम की चाय एक रूटीन है,
जिसकी चुस्कियों में एक अजीब कडवाहट है!
हफ्ते में मिली एक दिन की छुट्टी में
ये सब चीज़े खोजते हुए, मुझे एहसास हुआ
मेरी मसरूफियत, मेरा ही क़त्ल कर रही है!
और, मैं ही चश्म दीद गवाह हूँ, और ,
क़त्ल का ज़िम्मेदार भी शायद !
और साल के आखिर में मिली छुट्टियों में
मुझे मालूम हुआ की,
अपने अन्दर, रोज़ मर रहे, एक शख्स को
मैं १० दिनों में जिंदा नहीं कर सकता !!
मेरे ख्वाब, बहुत पीछे छूट गए मुझसे !
और मेरे ख्याल, मेरी ही मसरूफियत की ज़ंजीरो में बंधे
अपना दम तोड़ रहे है !
अब ना तो उगता सूरज शादाब है,
और ना ही ओस की बूंदों में कोई लज्ज़त!
गुनगुनी धुप की चादर भी नहीं है,
और शाम के खुशनुमा मंज़र भी नहीं!
मोहल्ले की बाज़ार की जीनत , खो चुकी है,
और शाम की चाय एक रूटीन है,
जिसकी चुस्कियों में एक अजीब कडवाहट है!
हफ्ते में मिली एक दिन की छुट्टी में
ये सब चीज़े खोजते हुए, मुझे एहसास हुआ
मेरी मसरूफियत, मेरा ही क़त्ल कर रही है!
और, मैं ही चश्म दीद गवाह हूँ, और ,
क़त्ल का ज़िम्मेदार भी शायद !
और साल के आखिर में मिली छुट्टियों में
मुझे मालूम हुआ की,
अपने अन्दर, रोज़ मर रहे, एक शख्स को
मैं १० दिनों में जिंदा नहीं कर सकता !!
Tuesday, December 28, 2010
मुझे बस, उदास शाम मत लिखना !
ख़त पर तुम, मेरा नाम मत लिखना
कुछ भी लिखना, अनजान मत लिखना !
अँधेरी रात या जलती दोपहर सही
मुझे बस, उदास शाम मत लिखना !
मेरी दीवानगी पे हंस लो जी भर
दिल पे अपने, नादान मत लिखना !
जो चाहो तुम वो सजा मंज़ूर है
बस मोहब्बत का, इल्ज़ाम मत लिखना !
लिए दिल में फिरता हूँ, मुझे याद है
"मेरे नाम का तुम क़लाम मत लिखना" !
घर मेरा जल गया दंगो में,और,
लोग कहते है, इसे सरेआम मत लिखना !
कुछ भी लिखना, अनजान मत लिखना !
अँधेरी रात या जलती दोपहर सही
मुझे बस, उदास शाम मत लिखना !
मेरी दीवानगी पे हंस लो जी भर
दिल पे अपने, नादान मत लिखना !
मुझे छोड़ कर तुम्हे जाना ही है
हो सके तो आखिरी, सलाम मत लिखना !
जो चाहो तुम वो सजा मंज़ूर है
बस मोहब्बत का, इल्ज़ाम मत लिखना !
लिए दिल में फिरता हूँ, मुझे याद है
"मेरे नाम का तुम क़लाम मत लिखना" !
घर मेरा जल गया दंगो में,और,
लोग कहते है, इसे सरेआम मत लिखना !
Wednesday, November 17, 2010
'मगहर'*
घर छोड़ दिया, गली छोड़ दी, शहर छोड़ दिया
उसको याद करने वाला, हर पहर छोड़ दिया!
मुझको ना रोक सकी, मेरी माँ की सदायें
अपने ख्वाबों की खातिर 'मगहर' छोड़ दिया!
वो चंचल, निम्मी, शेखू, नदीम, दीपक,
सुना है सभी दोस्तों ने वो घर छोड़ दिया!
विरानियाँ गूंजती होंगी मुस्कुराहटों की जगह
सुना है, बारिशों ने वो शजर छोड़ दिया!
उस दरख्त पर, ना सबा, ना पत्तियां, ना समर
मेरी खवाशिहों ने फेका हुआ पत्थर छोड़ दिया!
इससे बेहतर तो था वो बुरा भला कहता
*मगहर: वो क़स्बा जहाँ मैंने बचपन के चौधह बरस गुज़ारे!
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