क्या बात है, आज आसमा चुप है!
चहचहे नही उठते, समां चुप है!
तुम पास और पास कोई नही
फ़िर क्यूँ, ये मेरी ज़बा चुप है!
तुमको खो दिया खामोशियों ने मेरी
अब तुम बिन, सारा ज़हां चुप है!
आगाज़ पर नगमे कई गूंजे थे
मोहब्बत की मगर, इन्तिहाँ चुप है!
उजड़ी बस्तियों का मैंने शोर सुना
सरहद पार करता, ये कारवां चुप है!
चहचहे नही उठते समां चुप है.......
Saturday, August 22, 2009
Monday, August 03, 2009
कोई ख्वाब नही
अब इस ज़िन्दगी में कोई ख्वाब नही
अब इन आखों में कोई महता़ब नही!
चन्द लम्हों का साथ तुम्हारा,
अब हाथों में तुम्हारा हाथ नही!
एक बेकरारी थी, एक बेचैनी थी
अब दिल में कोई ज़ज्बात नही!
जिसे पढ़ने को था मैं बेकरार
मेरे करीब अब वो किताब नही!
ये जेहनों-सुकून भी, मौत का संमान भी
तुम्हारे चेहरे पे, जो आज नकाब नही!
अब इन आखों में कोई महता़ब नही!
चन्द लम्हों का साथ तुम्हारा,
अब हाथों में तुम्हारा हाथ नही!
एक बेकरारी थी, एक बेचैनी थी
अब दिल में कोई ज़ज्बात नही!
जिसे पढ़ने को था मैं बेकरार
मेरे करीब अब वो किताब नही!
ये जेहनों-सुकून भी, मौत का संमान भी
तुम्हारे चेहरे पे, जो आज नकाब नही!
Friday, July 31, 2009
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो
मेरी एक तम्मना है
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो
मेरी बाँहों में न सही
ख्वाबों में आती रहो!
रौशनी बिखरे आंखों से
और होटों से फूल
बनके बहार तुम
ये फिजा महकती रहो!
दर्द से फासला रहे
न कहीं रहे प्यास
महकती रहे बदन की डाली
तुम हमेशा बलखाती रहो!
फ़रिश्ते देखें हैरां हो
हूर तुमसे पशेमान हो
कभी चाँद बनो कभी
तारे बन झिलमिलाती रहो!
मेरी एक तम्मना है
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो ..............
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो
मेरी बाँहों में न सही
ख्वाबों में आती रहो!
रौशनी बिखरे आंखों से
और होटों से फूल
बनके बहार तुम
ये फिजा महकती रहो!
दर्द से फासला रहे
न कहीं रहे प्यास
महकती रहे बदन की डाली
तुम हमेशा बलखाती रहो!
फ़रिश्ते देखें हैरां हो
हूर तुमसे पशेमान हो
कभी चाँद बनो कभी
तारे बन झिलमिलाती रहो!
मेरी एक तम्मना है
तुम हमेशा मुस्कुराती रहो ..............
Saturday, July 25, 2009
कोई शाम मिले
कोई सुबह मिले, रात मिले
ख्वाबों की कोई शाम मिले!
नाम बदलकर पराये मिले,
अपने तो गुमनाम मिले!
रात की बोझल पलकों पर,
बचे हुए कई काम मिले!
उनका हाल सुनाएँ क्या,
चेहरे जो बेनाम मिले!
सीता घर घर ढूंढ रही,
कोई तो उसको राम मिले!
ख्वाबों की कोई शाम मिले!
नाम बदलकर पराये मिले,
अपने तो गुमनाम मिले!
रात की बोझल पलकों पर,
बचे हुए कई काम मिले!
उनका हाल सुनाएँ क्या,
चेहरे जो बेनाम मिले!
सीता घर घर ढूंढ रही,
कोई तो उसको राम मिले!
Wednesday, July 22, 2009
हुनर
दिल को छु ले, वो हुनर हम भी रखतें है
अपनी ग़ज़लों में थोड़ा असर, हम भी रखते हैं
झुकी निगाह पर लगते है कयास क्या क्या
जो दिल में उतरे, वो नज़र हम भी रखते हैं
हमने उस से कभी छाओं की आरजू न की
अपने सहन में एक शजर, हम भी रखते हैं
सुना है कोई सुबह शाम तेरे ख्यालों में है
थोड़ी बहुत तेरी ख़बर, हम भी रखतें हैं
बात ही कुछ ऐसी है, की कह नही पाते
वरना हर बात मुख्तसर, हम भी रखते हैं
अपनी ग़ज़लों में थोड़ा असर, हम भी रखते हैं
झुकी निगाह पर लगते है कयास क्या क्या
जो दिल में उतरे, वो नज़र हम भी रखते हैं
हमने उस से कभी छाओं की आरजू न की
अपने सहन में एक शजर, हम भी रखते हैं
सुना है कोई सुबह शाम तेरे ख्यालों में है
थोड़ी बहुत तेरी ख़बर, हम भी रखतें हैं
बात ही कुछ ऐसी है, की कह नही पाते
वरना हर बात मुख्तसर, हम भी रखते हैं
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