दिल को छू ले वो हुनर, हम भी रखते है
अपनी ग़ज़लों में थोडा असर, हम भी रखते है !
झुकी निगाह पर लगते है कयास क्या क्या
जेहन में जो उतरे, वो नज़र हम भी रखते हैं!
हमने उससे कभी छाओं की आरज़ू ना की
अपने सेहन(आँगन) में एक शजर (पेड़) हम भी रखते है !
सुना है कोई सुबह शाम तेरे ख्यालों में है
थोड़ी बहुत तेरी खबर, हम भी रखते है !
बात ही कुछ ऐसी है की कह नहीं पाते
वरना हर बात मुख़्तसर, हम भी रखते है !
Wednesday, September 08, 2010
Thursday, August 05, 2010
जिसे मैं प्यार समझ बैठा...
ना जाने क्या था तुम्हारी आँखों में
जिसे मैं प्यार समझ बैठा|
तुम्हारी मेहरबानिया थी मुझपे
और मैं इकरार समझ बैठा|
टुटा था मेरा अपना दिल मैं
घुंघरू की आवाज़ समझ बैठा|
निकला था ज़नाज़ा अपनों का
मैं किसीका निकाह समझ बैठा|
छुआ था तन्हाई ने जिस्म को
और मैं तेरा हाथ समझ बैठा|
डाला था किसीने ने कफ़न मुझपर
और मैं तेरा हिजाब समझ बैठा|
Saturday, July 17, 2010
तुम तूफ़ान बुला लेना
मेरी याद आये तुम्हे, कोई दीप जला लेना
और दिल न माने तो, मेरी ग़ज़ले गा लेना
अच्छी है ये गफलत की तुमको साल लगेगा
अगले दिन तुम चाहो, तो मुझको भुला लेना
आंसू बन के आ जाऊं आँखों में जो कभी
फ़िक्र न करना , अपनी पल्क़े झुका लेना
ढूँढ रहा हूँ आखिर जाने कौन सा साहिल मैं
धीरे धीरे हौले हौले, मेरी नाव डूबा लेना
दिले के जैसे मेरे घर की छत भी टूटी है
अब कोई डर नहीं, तुम तूफ़ान बुला लेना|
और दिल न माने तो, मेरी ग़ज़ले गा लेना
अच्छी है ये गफलत की तुमको साल लगेगा
अगले दिन तुम चाहो, तो मुझको भुला लेना
आंसू बन के आ जाऊं आँखों में जो कभी
फ़िक्र न करना , अपनी पल्क़े झुका लेना
ढूँढ रहा हूँ आखिर जाने कौन सा साहिल मैं
धीरे धीरे हौले हौले, मेरी नाव डूबा लेना
दिले के जैसे मेरे घर की छत भी टूटी है
अब कोई डर नहीं, तुम तूफ़ान बुला लेना|
Monday, March 15, 2010
उसका मिलना
उसका मिलना, और सारी हदें तोड़ के मिलना,
अच्छा लगा मुझे, उसका हर मोड़ पे मिलना !
हाथ से हाथ मिलाता रहा ज़माना अबतक
दिल छू गया, उसका दिल जोड़ के मिलना !
ज़ख्म उसके थे और अहसास मेरे दिल के
वो पाँव के छाले, शोलों पे फोड़ के मिलना !
घर उसका, मेरे बिना भी रहता खूबसूरत
पर मेरे लिए, अपना घर तोड़ के मिलना !
काश कोई शाम आये, और लौट आये वो
याद आता है उसका गली के मोड़ पे मिलना!
Thursday, October 15, 2009
घर का दिया घर जलाये.............
घर का दिया घर जलाये तो क्या करुँ
ज़िन्दगी मुझको भूल जाए तो क्या करूँ
शाम की अदाओं में दिल नही लगता,
लाख चेहरों में वो चेहरा नही दिखता,
किस उम्मीद की करूँ उम्मीद अब
गुल ही चमन मिटाए तो क्या करूँ
घर का दिया घर जलाये.............
कोशिशों से वाबस्ता हैं फ़साने मेरे,
कुर्बान उसके आस्तां पे तराने मेरे,
मैं मुख्तसर दिन रात की तरह मगर
वो मुझे न समझ पाये तो क्या करूँ
घर का दिया घर जलाये............
वो लौट आते तो ज़िन्दगी लौट आती,
मेरी खल्वत में रौशनी तो मुस्कुराती,
मैं ले तो आया चाँद सितारे मगर
वो अपना वादा न निभाए तो क्या करूँ
घर का दिया घर जलाये............
ख़बर नही मिलती
तुम्हारे जाने की मुझे कोई ख़बर नही मिली
न कोई हिचकी, न कोई बेचैनी, और न ही कोई अहसास|
अब तो बस खाली़ आसमान है, और बंजर ज़मीन,
जो बरसो से किसी मौसम का इंतज़ार कर रही है|
रास्तों में खड़े पेड़, किसी चिड़िया के घरोंदे की आस में,
अपनी हरी पत्तियां खो चुके है,
और सुबह किसी मायूस बच्चे का चेहरा लिए हुए ,
मुझे जगा तो देती है, पर उदास ज़्यादा करती है|
रातें सारी अमावस की हैं , काली, बहुत काली,
और मेरी आवाज़ इनकी खामोशियों में गुम हो जाती है|
मेरे एहसास देखते है अब,तुम्हें जाते हुए,
ये सिलसिला, अब रोज दिखाई देता है,
बस, तुम्हारे आने की ख़बर नही मिलती|
न कोई हिचकी, न कोई बेचैनी, और न ही कोई अहसास|
अब तो बस खाली़ आसमान है, और बंजर ज़मीन,
जो बरसो से किसी मौसम का इंतज़ार कर रही है|
रास्तों में खड़े पेड़, किसी चिड़िया के घरोंदे की आस में,
अपनी हरी पत्तियां खो चुके है,
और सुबह किसी मायूस बच्चे का चेहरा लिए हुए ,
मुझे जगा तो देती है, पर उदास ज़्यादा करती है|
रातें सारी अमावस की हैं , काली, बहुत काली,
और मेरी आवाज़ इनकी खामोशियों में गुम हो जाती है|
मेरे एहसास देखते है अब,तुम्हें जाते हुए,
ये सिलसिला, अब रोज दिखाई देता है,
बस, तुम्हारे आने की ख़बर नही मिलती|
Saturday, August 22, 2009
आज आसमा चुप है
क्या बात है, आज आसमा चुप है!
चहचहे नही उठते, समां चुप है!
तुम पास और पास कोई नही
फ़िर क्यूँ, ये मेरी ज़बा चुप है!
तुमको खो दिया खामोशियों ने मेरी
अब तुम बिन, सारा ज़हां चुप है!
आगाज़ पर नगमे कई गूंजे थे
मोहब्बत की मगर, इन्तिहाँ चुप है!
उजड़ी बस्तियों का मैंने शोर सुना
सरहद पार करता, ये कारवां चुप है!
चहचहे नही उठते समां चुप है.......
चहचहे नही उठते, समां चुप है!
तुम पास और पास कोई नही
फ़िर क्यूँ, ये मेरी ज़बा चुप है!
तुमको खो दिया खामोशियों ने मेरी
अब तुम बिन, सारा ज़हां चुप है!
आगाज़ पर नगमे कई गूंजे थे
मोहब्बत की मगर, इन्तिहाँ चुप है!
उजड़ी बस्तियों का मैंने शोर सुना
सरहद पार करता, ये कारवां चुप है!
चहचहे नही उठते समां चुप है.......
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